August 14
सेना व सैनिकों पर टिप्पणी करने वाले निर्लज्ज नेताओं,
किसी सैनिक का कठिन जीवन जी कर तो देखिए।
दिन -रात मरते हो वोटों के लिए,
घटिया राजनीति भी करते हो सत्ता के लिए;
सैनिक की भाँति निस्वार्थ देश पर जान लुटा कर तो देखिए।
हमेशा वातानुकूलित गाड़ियों में घूमने वालों,
स्वार्थ के लिए गधों के भी पैर चूमने वालों;
५० किलो बोझ पीठ पर उठा
किसी पर्वत की दुर्गम चोटी पर चढ़ के तो देखिए।
भोजन में नित्य स्वादिष्ट पदार्थ खाते हो ,
भोजन को छोड़ ,जानवरों का चारा भी खा जाते हो;
जंगल में पत्थर के चूल्हे पर थाली पर बनी
सूखी रोटी खा कर तो देखिए।
सर्दियों में गर्म कमरों में लिहाफ़ों में दुबके रहते हो,
गर्मियों में A.C की ठंडक का आनंद लेते हो;
सियांचिन में हिम के बिछौने पर खुले में
एक रात बिता कर तो देखिए।।
तिरंगे में लिपट कर जब आता है शहीद,उसके माता-पिता की क्या दशा होती है,
नव ब्याहता पत्नी उसे देख विलाप कर ज़ार-ज़ार रोती है;
बूढ़ा बाप कन्धे पर कैसे उठाता है युवा बेटे का शव,
अनुमान लगा कर तो देखिए।
कहते हो ”वेतन लेता है तो सैनिक देश की सेवा करता है,
यह उसका कर्तव्य है कोई एहसान नहीं करता है;”
दस गुणा अधिक वेतन लेकर सीमा पर सीने पे
एक गोली खा कर तो देखिए।
कोई पैसों के लिए सैनिक बने ज़रूरी तो नहीं,
यह उसका देश के प्रति प्रेम है कोई मजबूरी तो नहीं;
सैनिक की भाँति मातृभूमि पर शीश कटाने का भाव मन में ला कर तो देखिए।
बच्चों को महँगे विद्यालयों में पढ़ाते हो,
उच्च शिक्षा के लिए विदेशों में भिजवाते हो;
कैसे जीते हैं शहीदों के बच्चे उनके घरोमें झाँक कर तो देखिए।
कुछ नहीं कर सकते तो शहीदों का सम्मान कीजिए,
मुँह बंद कर अनर्गल बातें बंद कीजिए ;
सैनिक तुम से कई गुणा महान है ,उसके जैसा बन के तो देखिए।
सैनिक देश की शक्ति है आन है,स्वाभिमान है,
सैनिक सीमा पर खड़ा है तो सुरक्षित हिन्दोस्तान है;
स्मरण कर उसकेबलिदानों को नत-मस्तक कीजिए।
July 19
जिनके लिए अपने सपने पीछे छोड़ दिए,
जीवन के सारे तार जिनके सुख-दु:ख संग जोड़ लिए;
मँझधार में छोड़ जाएँगे वही ,कभी सोचा न था।
ख़ुशियाँ थी छोटी-छोटी और छोटे ही थे सपने,
सुखमय जीवन था,स्वर्णिम दिन थे अपने;
रूठेंगीं ख़ुशियाँ भी इतनी शीघ्र,कभी सोचा न था।
आशाओं के तिनके चुन-चुन कर सपनों इक नीड़ था बनाया,
आकांक्षाओं,उमंगों व अरमानों के रंगों से था उसे सजाया;
छूटेगा इक दिन नीड़ भी,कभी सोचा न था।
जानेअनजाने कभी किसी का दिल नहीं दु:खाया,
जो भी मिला उसे हमेशा प्यार से गले लगाया;
फिर भी जीवन में इतना दर्द मिलेगा कभी सोचा न था।
चलो जो भी जब हुआजैसा हुआ अच्छा हुआ,
विपत्तियों का दौर आया तो हँस के सहा;
सर्वशक्तिमान इतनी शक्ति देगा,कभी सोचा न था।
वैसे एकाकी जीवन बिताना होता है कठिन,
अपनों से प्यार व सम्मान मिले तो बीत जाते हैं यह दिन;
बच्चों ने प्यार व सम्मान से जिस ऊँचाई पर बिठाया,कभी सोचा न था।
ईश्वर करे सुखी रहें व फूलें-फलें
इनके जीवन पर दु:ख का साया भी न पढ़े;
ख़ुशियाँ मिलें इतनी अधिक, जो कभी सोचा न हो।
May 31st
हे मानव , तुमने मुझ पर अत्यन्त अत्याचार किया,
मेरे शरीर के हर अंग पर क्रूर प्रहार किया।
मैंने बच्चों के समान प्यार से तुम्हारा पालन -पोषण किया,
तुम ने जब चाहा,जहाँ चाहा,जैसे चाहा मेरा शोषण किया।
पुत्रों के समान मेरे हरे-भरे वृक्षों को काट धरती को बंजर बना दिया,
कहीं बस्ती बसाई,कहीं मस्जिद, कहीं गिरजा,कहीं मन्दिर बना दिया।
बाँध बना नदियों का स्वरूप ही बदल दिया,
जो बाक़ी बचा उसे गन्दगी व कूड़े-कर्कट से दूषित कर दिया।
अनगिनत फ़ैक्टरियों व वाहनों के विषाक्त धूएँ से वायुमंडल को प्रदूषित कर दिया,
अब उसमें स्वयं ही साँस लेना दूभर हो गया।
मैं जीवनदायिनी व पोषक तुम्हारी, तुमने मेरा ही विनाश किया,
निज स्वार्थ के लिए धरती ,नदियों , वनों व पर्वतों तक का सर्वनाश किया।
सुनामी व भूकंप के माध्यम से मेरी चेतावनी को तुम नहीं समझे।
अपनी शक्ति व बुद्धि के अहंकार में ऐंठे रहे।
परमाणु परीक्षण कर,मिसाईलें उड़ा चाँद पर पाँव रख समझा”मैं शक्तिशाली बन गया,
मेरे छोटे से प्रहार ने तुम्हारा अस्तित्व ही ख़तरे में डाल दिया।
अभी भी संभलहे मानव,आवश्यकतानुसार मेरा दोहन कर ,
स्वयं भी चैन से जी व आने वाली पीढ़ियों का भविष्य सुरक्षित कर।
अन्यथा मेरे प्रकोप से न बच पायेगा,
कितना भी शक्तिशाली बन जा,मेरे क्रोध के सामने शून्य हो जाएगा।
March 7
थी एक लड़की अल्हड़ व मासूम सी,पहाड़ी नदी सी उछलती ,कूदती अपनी ही धुन में चली जा रही,न अपनी चिंता न ज़माने का ग़म,मस्ती में आगे ही आगे बढ़ी जा रही।
तितली की भाँति उड़ती इधर से उधर,जिधर भी जाती प्यार की सुगन्ध जाती बिखर।बहुत ही ख़ूबसूरत थी वह,मानों अजन्ता की मूरत थी वह।रूप उसका देख चाँद भी शर्माएउजला रंग छूने से भी मैली हो जाए।
रूप के साथ-साथ गुणों की भी खान थी,सखियों व हमजोलियों में उसकी अलग ही पहचान थीजिधर भी जाती ख़ुशियाँ बिखेरती,बड़ी बूढ़ियों की तो मानों जान थी।उनके पास बैठ परियों की कहानियाँ सुनाती,उनकाअकेलापन कुछ तो कम कर जाती।
माता-पिता की आँख का तारा थी,हर कठिनाई में उनका सक्षम सहारा थी।चलते-चलते जीवन में ऐसा मोड़ आ गया,जो उसे एक अनजान राह पर ले गया।
अचानक एक नोकीले पत्थर से ठोकर लगी,औंधे मुँह गिरी,तन घायल,मन लहुलुहान,न जाने कब तक यूँ ही बेसुध पड़ी रही ,होश आया तो अपने को नितांत अकेली पाया।सोचने लगी,क्या करूँ ,किधर जाऊँ,सामने देखा तो एक नन्ही सी परी बाँहें फैलाए खड़ी मुस्कुरा रही थी,नाम था उसका” आशा”।पास बुलाया ,गले से लगाया व बोली:-“उदास मत हो,पकड़ो मेरा हाथ,मैं तुम्हें उस डगर पर ले जाऊँगी जहाँ ख़ुशियाँ हीख़ुशियाँ होंगी तुम्हारे साथ”।
पकड़ा जो उसका हाथ तो सफ़लता के सोपान चढ़ती गई,जीवन में आगे ही आगे बढ़ती गई,उस ऊँचाई पर पहुँची जहाँ देख उसे सब आश्चर्यचकित हैं,उसके संयमी व गरिमामय व्यक्तित्व के आगे नतमस्तक हैं।परिश्रम व आत्मबल से उसने स्वयं को उस पद तक पहुँचाया,अपने व्यक्तित्व को औरों के लिए उदाहरण बनायाकि:-
“एक ठोकर से जीवन समाप्त नहीं होता,साहस व आत्मबल हो पास जिसके वह कभी निराश नहीं होता।अकेले भी जीवन शान व स्वाभिमान से जिया जा सकता है,अब नारियों के आगे अबला शब्द नहीं लगता है।नारी में असीम शक्ति है वह चाहे तो कुछ भी कर सकतीहै,अपने वाक्चातुर्य से यमराज को भी हरा सकती है ।
January 31
भाई के साथ बिताया ज़मानाअभी भी याद है, दिन में कई बार रूठना व मनाना अभी भी याद है।
आपस में कभी लड़ना कभी झगड़ना,कभी मुँह फुला एक दूसरे की ओर पीठ कर बैठ जाना;खिलखिला कर फिर एक दूसरे के गले लग जाना अभी भी याद है।
वैसे था वह मेरा बड़ा भाई,दिन में कई बार हो जाती थी हमारी लड़ाई;शिकायत कर डाँट पड़ने पर ,मेरा मुस्कुराना अभी भी याद है।
बडा़ भाई बन कभी रोब ज़माना,हो सके तो हाथ भी चलाना;मेरा चिल्ला कर माँ को बुलाना अभी भी याद है।
हँसते खेलते यूँ ही बचपन निकल गया,उसका स्थान जवानी ने ले लिया;मेरा छोटी बहिन व उसका बड़ा भाई बन जाना अभी भी याद है।
परिस्थितियों ने फिर ऐसा कुछ मोड़ लिया,भाई को मेरा सहपाठी बना दिया;हमारा फिर से हमजोली बन जाना अभी भी याद है।
कालेज में हम इकट्ठे पढ़ते रहे,अपनी समस्याएँ भी सुलझाते रहे;सहशिक्षा में उसका मेरा संरक्षक बन जाना अभी भी याद है।
कालेज छूटते ही मेरा विवाह हो गया,भाई आगे पढ़ने अलीगढ़ चला गया;एम ए पास करने के बाद प्रोफ़ेसर बन जाना अभी भी याद है।
देखते-देखते भाई की भी शादी हो गई , मेरी एक सहेली उसकी जीवन संगिनी बन गई ;अपनी सहेली को भाभी बुलाना अभी भी याद है।
दोनों अपनी२ व्यस्तताओं मे उलझते गए,बीच-बीच में आपस में मिलते भी रहे;उसका मामा बनना व मेरा बुआ बन जाना अभी भी याद है।
मैं तो अपनी गृहस्थी में खो गई,किंतु भाई की शिक्षा आगे चलती रही;पी एचडी कर उसका डा॰ बन जाना अभी भी याद है।
विभिन्न विषयों पर भाई ने कई पुस्तकें लिखी,ग़ज़लों व नज़्मों से पूरी अलमारी भर गई;उनका साहित्य के क्षेत्र में नाम कमाना अभी भी याद है।
समय के क्रूर हाथों ने मेरा जीवन साथी छीन लिया,मेरे जीवन में अंधकार ही छा गया;भाई का आकर मुझे ढारस बँधाना अभी भी याद है।
रक्षाबंधन व भाईदूज पर मेरे घर आना,मेरा उन्हें राखी बाँधना व टीका लगाना;उनका मेरे सिर पर हाथ रख बड़ा भाई बन जाना अभी भी याद है।
वैसे हम एक दूसरे को नाम से बुलाते रहे,छोटे बडे़ का भेद-भाव भी मिटाते रहे;किंतु जीवन के इस मोड़ पर उनका मुझे बहिन व मेरा उन्न्हें भाई साहिब कहना अभी भी याद है।
साल पहले भाई से दिल्ली में मिलना,उनका हम सब को देख प्रसन्न होना;चलते समय कहना शायद अब मिलना हो न हो, अभी भी याद है ।
29 जनवरी को उनका यह वाक्य सत्य हो गया,भाई इस दुनिया से विदा हो गया;उनका बिछुड़ना व हम सब का आँसू बहाना कल की बात है ।
भाई के साथ बिताया ज़माना अभी भी याद है।
भाई से प्यार करने वाली बहिन
November 27
दिव्याँश की शादी में क्या मस्ती क्या धमाल था,बिखरी थी चारों ओर ख़ुशियाँ , हर कोई ख़ुशियों से माला-माल था।
दिवाने हो रहे थे सभी किसी को नहीं था कुछ होश,बिन पिए ही न जाने क्यों सब हो रहे थे मदहोश।
चहुँ ओर थी पुष्पों की सुगन्ध, रोशनी की छटा थी निराली,लगता था सितारे धरती पर मना रहे हैं दिवाली।
क्या मस्ती का आलम था,क्या था रंगीन समाँ,धरती तो धरती,झूम रहा था आसमाँ।
पापा झूमे,मम्मी नाची,चाची नाची,चाचा नाचा,मामी नाची,मामा नाचा,दीदी नाची,भैया नाचा,मौसी मौसा झूम के नाचे,नानी का तो दिल भी नाचा।
ख़ुशियों का आलम था सब थे मस्ती में चूर,नाच गाना हो रहा था,नहीं था किसी को चुप रहना मंजू़र ।
रंग-बिरंगी पोशाकों में युवतियाँ थी ग़ज़ब ढा रहीं,अपनी मोहक अदाओं से सब को थीं लुभा रहीं।
लड़की वालों ने पलके बिछा बारात का स्वागत किया,बरातियों ने भी गले लगा उनको सम्मान दिया।
समधी आपस में यूँ गले मिले,मानो वर्षोंसे बिछुडे़ दो भाई हों मिले।
समधिनों ने भी एक दूसरे को यूँ हँस के गले लगाया,मानो बहिनों का प्यार फिर से हो उमड़ आया।
चूडि़याँ खनकाती दुल्हन के आने से घर में रौनक़ आ गई,दिव्याँश के जीवन में तो ख़ुशियों की रंगीन बहार ही आ गई।
नित्य सभी के घरों में ख़ुशियों केअवसर आते रहें ,दुल्हनें सजती रहें व फूल सेहरों के भी मुस्कुराते रहें ।
सभी को हार्दिक **बधाई** व शुभ कामनाएँ
October 13
चल दिल तोड़ दें आज रूढ़ियों की जर्जर दीवारें,हो सके तो कुछ नव निर्माण करें।
ईर्ष्या, द्वेष ,झूठ व घृणा को त्याग ,स्नेह, प्रेम,सत्य व मानवता का आह्वान करें।
स्वार्थ मूल है सब झगड़ों का ,स्वार्थ को छोड़ दें,“अहं “की ज़ंजीर ने जकड़ा है,इस ज़ंजीर को आज तोड़ दें;मृत-प्राय जीवन न जी कर ,स्वाभिमान से जीने का कुछ सामान करें।
तेरे-मेरे,अपने-पराए की सोच को छोड़,स्वयं को कुछ विशाल बनाएँ,कुप्रथाओं के गर्त से निकल ,स्वयं को ज़रा ऊपर उठाएँ;कर्तव्य समझ कुछ भी करें,किसी पर न कोई एहसान करें।
बेटे,बेटी में भेद क्यों ,दोनों अपना अंश हैं,केवल बेटों से नहीं ,बेटियों से भी चलता वंश है;दोनों हैं समान प्यार व शिक्षा के अधिकारी,दौनों का ही सम्मान करें।
“परिवर्तन प्रकृति का नियम है”, परिवर्तन तो हो के रहेगा,सुखमय जीवन उसका है जो समय के साथ चलेगा;पुराना सब अच्छा व नया सब बुरा नहीं,दोनों को अपना कर नए युग का निर्माण करें।
August 28
भाईयों की तो जीवन संगिनी होती ही हैं,मायके का भी शृंगार होती हैं ,भाभियाँ,
माँ तो केवल लुटाती है प्यार ही,पीहर आने पर बेटियों का आदर सत्कार करती हैं ,भाभियाँ।
बहिनों को भाई लगते हैं चाँद से भी प्रिय,उसी चाँद की प्यारी सी चाँदनी होती हैं ,भाभियाँ।
बेटियाँ तो घर छोड़ चली जाती हैं पति के घर,घर, परिवार व माता-पिता को संभालती हैं ,भाभियाँ।
माँ तो माँ है,भाभियाँ घर की रौनक़ हैं,घर रूपी उपवन को सज़ा कर गुलजा़र बनाती हैं ,भाभियाँ।
भाभियाँ केवल सजावट की वस्तु नहीं,वंश व परिवार को आगे बढ़ाती हैं ,भाभियाँ।
माता-पिता कभी न कभी चले जाते हैं दुनिया से,जीवन भर ननदों का साथ निभाती हैं ,भाभियाँ।
ईश्वर करे भाई-भाभियों की जोड़ियाँ सलामत रहें,बन सँवर कर भाईयों के साथ ख़ूब सजती हैं ,भाभियाँ।
August 21
अच्छा लगता है।
किसी त्यौहार पर जब भाई-बहिन इकट्ठे हो जाएँ तो,माता-पिता को बहुत अच्छा लगता है।
आपा धापी के जीवन में समय की कमी है सब के पास,व्यस्त जीवन से फु़रसत के कुछ क्षण निकाल मस्ती करना अच्छा लगता है।
बेटा माँ की गोद में सिर रक्खे,भाई भाई से गले मिले,बहिनें ,भाभियाँ चुहुल कर खिलखिलाएँअच्छा लगता है।
आज तीव्र गति से भागते जीवन में खु़शियाँ कम हैं,ख़ुशी के क्षणों को आँचल में समेट मुस्कुराना अच्छा लगता है।
बच्चे हुड़दंग करें व युवा जब मस्ती करें ,उनके साथ बूढो़ं का भी बच्चा बन जाना अच्छा लगता है।
जीवन में संयम व गंभीरता सराहनीय गुण हैं,कभी २ अंदर छुपे बच्चे को बाहर लाना अच्छा लगता है।
आज के जटिल जीवन में समस्याएँ व उलझनें बहुत हैं,भूल उन्हें बच्चों के साथ बच्चा बन जाना अच्छा लगता है।
त्यौहार ही मिलाते हैं भाई-बहिनों को,सब का साथ मिल कर हँसना,नाचना, गाना अच्छा लगता है।
July 20
आज फिर आ गई याद उनकी।
लगता था न जी सकूँगी एक भी दिन आपके बिना,देखते ही देखते न जाने कितने वर्ष बीत गए।
कैसे बीते वर्ष, यह बताना हैअति कठिन,कुछ रो के, कुछ हँस के ,कुछ यादों में जी लिए।
दिन-रात आने वाले दिनों के सपने संजोते रहे,कल्पनाओं के पंखों से आकाश को भी छूते रहे;न जाने कब बंद मुट्ठी से रेत की भाँति सब सपने फिसल गए।
सोचा था हाथ पकड़ कर दूर तक चलेंगे साथ-साथ,ख़ुशियाँ और ग़म मिल कर बाँटेंगे साथ-साथ; ज़िंदगी धोखा दे गई ,निर्दयी मौत ने वे पल छीन लिए।
अब तो बच्चों की सूरतों में दिखाई देती है तस्वीर आपकी,उनकेआसपास होने पर होती है अनुभूति आपकी,इसी तस्वीर को देखते -देखते ही न जाने कितने युग बीत गए।
जितना भी साथ था आपने बहुत प्यार व सम्मान दिया,बच्चों ने भी पलकों पर बिठाया तो अपना ग़म भुला दिया;इसी प्यार के सहारे तो जुदाई के इतने वर्ष जी लिए ।
ऐसा कोई दिन नहीं जब आपकी याद आती न हो,कभी हँसा ,गुदगुदा,कभी चुपके से रुलाती न हो;इन्हीं मधुर यादों के सहारे दु:ख के ये दिन बीत गए।
कुछ यादें ऐसी हैं जो चाहकर भी भुलाई नहीं जातीं,जितना भी दूर करो उतना आस-पास हैं मंडरातीं;बुध्दि ने द्वार बंद किए तो दिल के झरोखे जीत गए।
आप जब याद आए बहुत याद आए।
28 years have passed,since you left us.
April 23
कहते हैं =- दिल तो पागल है, बच्चा है व नादान है ।वास्तव में दिल एक ईश्वरीय वरदान है।
“दिल“ क्योंकि=-यथार्थ के धरातल पर गिरकर ,टूट जाते हैं जब कल्पनाओं के पंख,सपने ऊँची उड़ान के हो जाते हैं चूर-चूर,तब आगेआकर सहारा देता है ,यह दिल।
परिस्थितियों से हार जब भावनाएँ आहत हो जाएँ,चोटों की पीड़ा भी असहनीय हो जाए,घावों पर मरहम लगाता है ,यह दिल ।
परिस्थिति कैसी भी हो साहस खोने नहीं देता,हम को अकेला कभी होने नहीं देता,ठोकर खा कर जब पाँव डगमगाने लगें,झट आकर संभाल लेता है ,यह दिल।
जीवन में कई तूफ़ान आतेहैं,जो अपने साथविश्वास,भरोसा,इच्छाएँ,सपने सब बहा ले जाते हैं,इन तूफ़ानों में भी दृढ़ता से थामे रखता है, यह दिल।
दिल सहारा न दे तो न जाने क्या हो जाए,हम तो निराशा की भूल-भूलैयों में भटकते रह जाएँ,अंधेरे में आशा की सुनहरी किरण बन सही राह दिखाता है यह दिल।
।अपराध जो किए ही न हों ,जब उनके भी दंड मिलें,मुरझा जाते हैं आशाओं और आकांक्षाओं के हों जो फूल खिले,सांत्वना देने के लिए सुखद ,शीतल फुहार बन जाता है ,यह दि ल
सब साथ छोड़ दें यह कभी साथ नहीं छोड़ता ,विषम से विषम परिस्थिति में मुख नही मोड़ता,हर विपत्ति में साथ निभा कर सच्चा मित्र बन जाता है,यह दिल।।
दिल न तो पागल,न बच्चा व नादान है ,यह तो अत्यन्त शक्तिशाली व सामर्थ्यवान है,क्योंकि जीवन भी तब तक है ,जब तक धड़कता है यह दिल।
किन्तु कभी-कभी पागलपन,बचपना व नादानियाँ करता तो है,और करनी भी चाहिए पर कभी-कभी।
March 6
“जीना”जीना उसीका जीना है जो दूसरों के लिए कुछ कर के जिए,यूँ तो हर व्यक्ति अपने लिए है नित्य जीता व मरता।
“भलाई के बदले भलाई” तो कोई बडी़ बात नहीं,बुराई के बदले भलाई कर है व्यक्ति महान बन पाता।
किसी के लिए कुछ कर सको तो कर के भूल जाओ,बदले में कुछ चाहना तो परोपकार नहीं कहलाता ।
धैर्य व साहस की पूँजी है पास जिसके,तूफा़न कितने भी आएँ नहीं वह डगमगाता।
ऐसा कौन है जिसने जीवन में कष्ट नहीं झेले,जग में सुख-दु:ख से तो सब का है नाता।
अनमोल जीवन दिया है ईश्वर ने सब को ,जीता वही है जो विपत्तियों को हँस के है सह जाता।
हर समय रोने से कम होती नहीं उलझनें,अडिग रहे जो मुसीबत में वही है धीर कहलाता।
छोटा सा जीवन है हँसी ख़ुशी प्यार से गुजा़र लो,चला गया जो एक बार वह फिर कभी लौट कर नहीं आता।
February 18
कुछ समय पहले लिखी कविता “वीर सैनिक “ की कुछ पंक्तियाँ पुलवामा में शहीद वीर जवानों को श्रद्धांजलि।
धन्य है वह माँ जिसके सपूत हो तुम ,घर से ही सिर पे बाँध आते कफ़न , तुम सैनिक ।
जान हथेली पर रख देश की रक्षा करते हो,शत्रु की ईंट से ईंट बजा,मृत्यु से नहीं डरते हो ;मौत से नित्य आँख-मिचौली खेलते हो ,तुम सैनिक।
देश के बच्चे अनाथ न हों अपने बच्चों को अनाथ कर जाते हो ,बने रहें सुहाग सब के अपनी पत्नी का सुहाग मिटाते हो;जीवित रहें भारत माता के लाल सब ,अपनी माँ की गोद सूनी कर जाते हो ,तुम सैनिक।
नेताओं के प्रिय पुत्र तुम्हारा मुक़ाबला कर सकते नहीं ,देश खा सकते हैं ,देश पर मर सकते नहीं;मातृभूमि पर शीश कटाने का साहस केवल रखते हो ,तुम सैनिक।
तुम्हारे बलिदानों को देश भुला सकता नहीं,ऋण जो तुम्हारा सब पर है उसे कोई चुका सकता नहीं;देश की आन, शान, स्वाभिमान हो ,तुम सैनिक।
तुम्हारी प्रशंसा के लिए मिलते कोई बोल नहीं ,तुम्हारी सेवाओं का जग में कोई मोल नहीं;जीते जी तो महान हो ही ,मर कर भी “अमर”हो जाते हो,तुम सैनिक।
January 1
घर के पिछवाडे़ झोंपडी़ में रहता है,एक सिलोना सा सात साल का बच्चा ,न जाने कहाँ खो गए उसके सपने व इच्छाएँ,फिर भी मुस्कुराता है।
ठिठुरती सर्दी हो या तपती गर्मी,मुँह अंधेरे उठ,फटी क़मीज़ व पुरानी चप्पल पहन,कचरे के ढेर में कुछ लिफा़फे़,प्लास्टिक व ख़ाली बोतलें तलाशने चला जाता है।
न कोई जि़द न कोई माँग,करे भी किससे व कैसे,घर में खाने को भी कुछ नहीं,उसका तो भूख व निर्धनता से गहरा नाता है ।
बटोरे सामान को बेच कुछ पैसे पास रखबाक़ी माँ के हाथ में थमाता है ,माँ प्रसन्न हो जाती है,अब तो बेटा भी कमाता है ।
दिन भर रखता है छोटी बहन का ध्यानमाँ के काम पर चले जाने के बाद,रूखी-सूखी खा हँसते ,नाचते, गाते सारा दिन बिताता है ।
प्रात: कंधे पर बैग लटकाए बच्चों को स्कूल जाते देखसोचता है ,काश वह भी पढ़ने जा सकता,इसी सपने को लेकर सो जाता है,प्रात: उठ फिर कचरे के ढेर पर पहुँच जाता है ।
घर के पिछवाडे़ झोंपडी़ में रहता है एक मासूम सा बच्चा।
November 24
याद आ रहा है शायद कभी कहीं इक घर था मेरा,सब मिलजुल कर रहते थे,सब की ख़ुशियों का था बसेरा।
घर तो छोटा था किन्तु सपनों की ऊँची उडा़न थी,उस घर में रहने वाले सदस्यों से घर की शान थी।
चारों पहर घर में रहती थी चाल-पहल,सब प्रसन्न थे वहाँ, सब को लगता था वह महल।
सपनों के पंखों ने उड़ान भरी सब धीरे २ चले गए,घर को अकेला उस के हाल पर छोड़ गए।
चाहे अब वहाँ रहता नहीं कोई व घर वीरान है,किन्तु अभी तक घर की अपनी एक पहचान है।
अब तो घर में जाने से भी कतराती हूँ मैं,मूक दीवारों के प्रश्नों के उत्तर देने से घबराती हूँ मैं।
पूछती हैं दीवारें ,क्या ले के आए थे ,हमने क्या नहीं दिया,गोदी में बिठा सब के आँचल को ख़ुशियों से भर दिया।
फिर ऐसा क्या हुआ जो सब हम्हें छोड़ गए,यादों की धरोहर थमा हम से मुँह मोड़ गए।
यथा संभव सब को हमने सहारा दिया,क्या दोष था हमारा,जो यूँ सब ने किनारा किया।
इन प्रश्नों का कोई उत्तर मैं दे नहीं पाती ,किन्तु घर को अपनी विवशता भी तो समझा नहीं पाती।
कामना करती हूँ कि घर फिर आबाद हो जाए,हम्हें तो दीं ख़ुशियाँ इसने, जो भी रहे उसका जीवन ख़ुशियों से भर जाए।
यद्यपि जुदाई है पर इसकी यादें नहीं हुईं कम,वहाँ बिताए हर पल को स्मरण कर आँखें हो जाती हैं नम।
याद आ रहा है शायद कहीं इक घर था मेरा,नहीं ,नहीं ,केवल मेरा नहीं वह तो था सब की ख़ुशियों का बसेरा।
October 16
फिर कभी लौट कर नहीं आता एक बार जो समय चला गया ,पर जाते-जाते न जाने हम को क्या -क्या सिखा गया ।
समय से बड़ा संसार में और कोई शिक्षक नहीं,कोई पाठशाला न पढ़ा सकी , पाठ जो समय पढ़ा गया।
सर्वदा सपनों के संसार में जो विचरते रहे,कल्पनाओं के पँखों से गगन से भी ऊँचा उड़ते रहे;समय ने एक ही झटके में उन्हें यथार्थ के धरातल पर बिठा दिया।
हमेशा धन के नशे में जो रहते थे चूर-चूर ,निर्धनों को तुच्छ समझ उनसे रहते थे दूर-दूर;निर्धन तो अपनी योग्यता से सम्मानित हो गए,समय ने अहंकारी,स्वार्थी धनिकों को वृद्धाश्रम पहुँचा दिया ।
औरों की प्रसन्नता के लिए जिन्होंने अपना सब कुछ लुटा दिया,अपना अस्तित्व मिटा उनके दु:खों को भी अपना लिया;हुए जब अकेले तो, “अपना सहारा स्वयं बनो “,समय जाते-जाते समझा गया।
समय कब कैसी करवट ले कोई जानता नहीं ,समय के महत्व व शक्ति को मनुष्य पहचानता नहीं;चमत्कार तो देखिए समय का ,एक चाय वाले को प्रधानमंत्री बना दिया।
समय न कभी रुका हैऔर न रुकेगा कभी,पुरुषार्थी समय के आगे न झुकेगा कभी;जीवन भर पुरुषार्थ किया तो समय ने,अबुल कलाम को राष्ट्रपति बना दिया।
जो व्यक्ति हमेशा समय का सदुपयोग करते रहे,विशिष्ट कार्य कर जग में नाम रोशन करते रहे;सोकर व्यर्थ समय गँवाने वाला तो हाथ मलता ही रह गया।
August 15
देश का प्रहरी हिमालय ,हिमालय के रक्षक हो ,तुम सैनिक।
पक्षी भी न उड़ के पहुँचे यहाँ,घर बना लेते हो , तुम सैनिक।
धन्य है वह माँ जिसके सपूत हो तुम ,घर से ही सिर पे बाँध आते कफ़न ,तुम सैनिक।
जान हथेली पर रख ,देश की रक्षा करते हो ,शत्रु की ईंट से ईंट बजा,मृत्यु से नहीं डरते हो;मौत से तो नित्य आँख-मिचौली खेलते हो ,तुम सैनिक ।
जल ,थल नभ पर तिरंगा फहराते हो ,तभी तो वीरता के पर्याय कहलाते हो;कठिन से कठिन काम भी सुगम कर दिखाते हो ,तुम सैनिक।
देश में कहीं भी कोई आपदा आए तुम्हीं बुलाए जाते हो,बाढ़ में फँसे हजा़रों की जान बचा, बदले में पत्थर खाते हो;आवश्यकता पड़ने पर फिर उनकी रक्षा करते हो ,तुम सैनिक।
कंपकंपाती सर्दी में जब सब सोते हैं गर्म कमरों में,हिम केबिछौने पर सो जाते हो तुम,जून की भीषण गर्मी में जब सब लेते हैं A,C,की ठंडक,तपती रेत पर खडे़ पहरा देते हो तुम;जो कार्य कोई न कर सके ,कर दिखाते हो तुम सैनिक।
देश के बच्चे अनाथ न हों ,अपने बच्चों को अनाथ कर जाते हो,सब के सुहाग बने रहें ,अपनी पत्नी का सुहाग मिटाते हो;जीवित रहें भारत माता के लाल सब,अपनी माँ की गोद सूनी कर जाते हो ,तुम सैनिक।
नेताओं के प्रिय पुत्र तुम्हारा मुक़ाबला कर सकते नहीं,देश खा सकते हैं पर देश पर मर सकते नहीं;मातृभूमि पर शीश कटाने का साहस केवल रखते हो ,तुम सैनिक।
तुम्हारे बलिदानों को देश भुला सकता नहीं, ऋण तुम्हारा जो सब पर है ,उसे कोई चुका सकता नहीं;देश की आन ,शान ,स्वाभिमान हो ,तुम सैनिक ।
देशभक्ति का ढोंग करें ये नेता,सच्चे देशभक्त हो तुम ,देश को नित्य क्षति पहुँचाते,नि:स्वार्थ सेवा करते हो तुम;कुछ को छोड़,सब सत्ता के लोभी व स्वार्थी,इन सब से महान हो ,तुम सैनिक।
तुम्हें देख श्रद्धा से सिर झुक जाता है ,न जाने तुम से हम सब का कैसा नाता है ;केवल अपनी माँ की ही नहीं ,देश की हर माँ की संतान हो ,तुम सैनिक ।
तुम्हारी प्रशंसा के लिए मिलते कोई बोल नहीं ,तुम्हारी सेवाओं का जग में कोईमोल नहीं; जीते जा तो महान हो ही ,मर कर भी”अमर”हो जाते हो ,तुम सैनिक ।
जय हिंदजय जवानजय हिंद की सेना
July 20
जाना ही था तो चले जाते पर इतना तो कर जाते ,अपने प्यार ,वादों ,यादों की सौग़ातें साथ ही ले जाते ।
जाकर कम से कम एक पत्र ही लिख दिया होता ,जिसमें अपने शहर व रहने के स्थान का पता दिया होता ।
सौग़ातें जो छोड़ गए थे, वहाँ पहुँचा देते ,उन्हें सहेजने ,सँवारने, व संभालने की परेशानी से तो बच जाते ।
कोई किसी को यूँ तो छोड़ कर नहीँ जाता ,यह जानते हुए भी कि उसे आपके बिना जीना नहींआता ।
न जाने कौनसा है वह देश ,यहाँ जाते तो सब हैं पर लौट कर नहीं आते,पीछे अपनी यादें व व अधूरे सपने हैं छोड़ जाते ।
यादों को कोई छोड़ भी दे पर सपनों को नहीं छोड़ा जाता ,कर्तव्य बन जाते हैं सपने ,उन से मुँह मोड़ा नहीं जाता,।
कुछ भी करते हुए आपको हमेशा समीप पाया हमने ,यादों के सहारे ही तो हर कर्तव्य निभाया हमनें।
अधूरे सपनों को पूरा करने का फ़र्ज़ तो निभाना ही था,उम्र भर,हमारे लिए जो किया आपने,उसका कुछ ऋण तो चुकाना ही था।
कहीं से देख सको तो देखो,आपके सपनों को कहाँ पहुँचाया हमने ,किसी ने हार नहीं मानी,अपना २ कर्तव्य निभाया सबने ।
आप तो हम्हें भूल गए हमने आपकी यादों को सीने से लगाए रखा,जिस शान व स्वाभिमान से जीते थे ,उसको वैसे ही बनाए रक्खा ।वैसे,अभागे तो आप भी कम न थे,सब की ख़ुशियों में ख़ुश होते रहे,अपनी चौखट पर जब आईं ख़ुशियाँ तो दुनिया ही छोड़ गए ।
June 17
माँ स्वर्ग से बढ़ कर है तो पिता भी कम नहीं महान है,जनम दे कर दुनिया दिखाती है माँ,पिता कन्धे पर बिठा दिखलाता आसमान है ।
स्वयं गीले में सो बच्चे को सूखे में सुलाती है माँ,बच्चे का कोई कष्ट सह नहीं पाती है माँ;पिता भी पुत्र वियोग में त्याग सकता प्राण है।
कोई कष्ट हो तो माँ रो भी लेती है,पति के कन्धे पर सिर रख सब दु:ख भूल जाती है ;पिता शिव बन करता सब कष्टों का विष पान है।
माँ घर में न हो तो सूना-सूना लगता है घर,
माँ के घर में होने से फूलों सा महकता है घर;माँ घर की शोभा है तो पिता भी घर का सम्मान है।
स्वयं हमेशा छोटे से कच्चे घर में रहने वाला,धूप ,गर्मी सर्दी , सब कठिनाइयाँ सहने वाला;बच्चों की सुख -सुविधा के लिए बनवाता घर आलिशान है।
दिन भर व्यस्त रह कर बच्चों का रखती है ध्यान माँ,सुखों का परित्याग कर बन जाती है महान माँ;सुख सुविधाओं के लिए परिश्रम कर पिता उपलब्ध कराता हर सामान है।
दिन भर की भाग दौड़ से कभी थक भी जाती है माँ,बच्चों के उत्पात से तंग आकर क्रोध में कुछ। बड़बड़ाती है माँ;पर न जाने क्यों पिता के घर में घुसते ही आ जाती उसके चेहरे पे मुस्कान है।
आज कुछ हद तक आर्थिक स्वतंत्र हो री हैं नारियाँ,हर क्षेत्र में अपना कौशल दिखा रहीं हैं नारियाँ;माँ की स्वतंत्र पहचान सराहनीय है,पर पिता जब साथ हों तो माँ की निराली ही शान है।
बच्चों को डाक्टर इन्जीनियर, I, A, S, अधिकारी बनाने के सपने देखता है पिता,सपनों को पूरा करने के लिए न जाने कितना परिश्रम करता है पिता;कभी रिक्शा-चालक ,कभी सैनिक ,अध्यापक वैज्ञानिक व कभी बन जाता किसान है।
क्यों न हम माता पिता की तुलना करना छोड़ दें,माँ को माँ ही रहने दें पिता को पिता बनने दें;एक दूसरे के पूरक हैं दोनोंदोनों के परस्पर सहयोग से होता स्वस्थ समाज का निर्माण है।
June 7
बहुत ढूँढा गली मोहल्ले , खेल के मैदानों में,बचपन कहीं भी ढूँढे न मिला;पता चला बहुमंज़िली इमारत के एक कमरे में बंद हो गया है।
प्रात: का उगता सूरज उसने कभी देखा ही नहीं,पक्षियों के चहचहाने की ध्वनि पहचानता नहीं;वह तो A.C.कमरे में मज़े से दस बजे तक सो रहा है।
गिल्ली -डंडा ,लुका छिपी के खेल अब हो गए पुराने,सावन के झूलों बारिश में भीगने का आनंद वह क्या जाने;क़ीमती मोबाइल पर खेल देख कर वह प्रसन्नहो रहा है।
चाय के साथ आम का अचार व पराँठा वह क्यों खाए,भट्टी पर दाने भुनाने शाम को वह क्यों जाए;वह तो मैगी, पिज़्ज़ा व कोक का आदी हो गया है।
गर्मियों में वह कभी नहर या नदी मों नहाया नहीं,बहते तेज़ पानी में उसे तैरना आया नहीं;वह तो शुल्क दे कर तरनताल में तैरना सीख रहा है।
चार छ: बच्चों के हुड़दंग व मस्ती का आनंद उसने कभी लिया ही नहीं,क्योंकि वह कभी संयुक्त परिवार में जिया ही नहीं;एकल परिवार का इकलौता बच्चा बालकनी में खड़ाकिसी साथी को ढूँढ रहा है।
प्रकृति से बचपन बहुत दूर हो गया है,प्रदूषित वातावरण में रहने को मजबूर हो गया है;वह तो साँस भी दवाओं के सहारे ले रहा है।
March 8
पापा की तो लाड़ली होती हैं ,लड़कियाँ ,माँ की भी सहेली बन जाती हैं ,लड़कियाँ।
नन्हें -नन्हें पैरों से घर में ठुमकने वाली ,बड़ी हो कर माँ के हर काम में हाथ बँटाती हैं ,लड़कियाँ।
लड़कियाँ घर में न हों तो लड़के उदास बैठे रहें,रक्षाबन्धन पर भाई की कलाई राखी से सजाती हैं ,लड़कियाँ।
लड़कियाँ लड़कों से किसी बात में कम नहीं,अब तो फ़ाइटर विमान भी उड़ाती हैं ,लड़कियाँ।
लड़कियों को भूल कर भी अबला न समझें,समय आने पर झाँसी की रानी बन जाती हैं। लड़कियाँ।
इनके त्याग की कोई सीमा नहीं,अनजान व्यक्ति का घर बसाने,पिता का घर छोड़ चली जाती हैं,लड़कियाँ।
वैसे भी लड़कियाँ , लड़कों से महान हैं,नव सृजन कर ,मातृ शक्ति बन जाती हैं ,लड़कियाँ।
पुरुष प्रधान समाज मे अपनी योग्यता व वर्चस्व पर गर्व करते हैं जो,उन को इस योग्य भी ,माँ बन , बनाती हैं ,लड़कियाँ।
स्त्री पुरुष की सहयोगी है,प्रतिद्वंद्वी नहीं,प्यार व सम्मान मिलने पर ,सर्वस्व न्योछावर कर घर को स्वर्ग बनाती हैं ,लड़कियाँ।
February 8
नन्ही सी चिड़िया ने देखा इक सपना,उड़ना सीखूँगी तो नभ में नीड़ होगा अपना।
अति सुन्दर इक घर बनाऊँगी,उसे मैं चाँद तारों से सजाऊँगी।
चिड़िया क्या जाने कितना असीमित व अनन्त आकाश है,सीमित उड़ान से वहाँ तक पहुँचना न उसके बस की बात है।
पंख लगे ,उड़ना सीखा, ख़ूब ऊँची उड़ान भरी,उसने सोचा मैं तो आकाश तक पहुँच गई।
एक घर की मुंढेर के नीचे घोंसला बना लिया,अपने साथी संग उसे अच्छे से सज़ा लिया।
दो नन्हें बच्चे उस घर में चहकने लगे,उन्हें ख़ुश देख चिड़िया के सपने महकने लगे।
प्रतिदिन बाहर जाकर चोंच में दाना लाती थी चिड़िया,अपने बच्चों को बड़े प्रेम से खिलाती थी चिड़िया।
एक दिन दाना लेने जैसे ही बाहर गई,ताक में थी बिल्ली घोंसला तोड़ बच्चे ले गई।
हृदय विदारक रुदन था उसका,,कुछ कर न सकी,निर्बल व असहाय थी,बिल्ली का सामना कर न सकी।
एक बार फिर बच्चों के लिए सुरक्षित घोंसला बना लिया,बच्चों को प्यार से पाला व उड़ने योग्य बना दिया
।नित्य बच्चों को उड़ना सिखाती थी चिड़ियाउनको फुदकते देख ,मन ही मन हर्षाती थी चिड़िया।
उड़ना जो सीखा तो एक दिन नीड़ छोड़ उड़ गए,बेचारी चिड़िया को अकेली छोड़ गए।
दिन भर इधर उधर घूमती,रात घोंसले में बिताती थी,उसे वहाँ अपने बच्चों की सुगन्ध आती थी।
नियति ने चिड़िया पर फिर क्रूर प्रहार किया,तेज़ आँधी ने उसका घोंसला भी उखाड़ दिया ।
अब न घर न बच्चे डाल २मंडराती थी चिड़िया,दिन रात विरह के गीत गाती थी चिड़िया।
फिर सोचा,पंख लगे हैं तो उड़ेंगे ही,क्यों रोऊँ मैं ,क्यों न ख़ुशियों के गीत गाकर औरों का मन बहलाऊँ मैं।
अब दिन भर एक घने पेड़ की डाल पर बैठ जाती है ,चिड़िया,थके हारे पथिकों को मधुर संगीत सुनाती है ,चिड़िया।
सोचती है ,क्यों देखा मैंने ऐसा क्षण भंगुर सपना,रात भर का साथी था ,आँख खुलने पर जो रहा न अपना।
January 16
पहले छोटे छोटे घरों में रहते थ ,महान व बड़े बड़े लोग,अब बड़े बड़े घरों में रहते हैं छोटे व स्वार्थी लोग;अब घर ,घर न रह कर मकान बन गए हैं,प्रेम ,लगाव ,भावनाओं के स्थान नहीं,दिखावे का सामान बन गए हैं।
प्रत्येक की ज़िन्दगी अपने अपने कक्षों में सिमट गई है,पड़ोसी को पड़ोसी से स्हानुभूति नहीं है;मनुष्य होते हुए भी न जाने क्यों सब पाषाण बन गए हैं।
अब बच्चे घरों में कहकहे नहीं लगाते,समय के अभाव से माता पिता उन्हें पास नहीं बिठाते;अब तो मोबाईल ही सब की पहचान बन गए हैं।
आधुनिक उपकरणों व सामन से मकान इतने भर लिए हैं,संबंधों,संस्कारों,संवेदनाओं के लिए स्थान ही नहीं है;प्यार ,संबंध ,स्हानुभूति तो अब मेहमान बन गए हैं।
मशीनों के साथ रहते २मनुष्य मशीन बन गए हैं,बुद्धि विकसित हो रही है,हृदय संकुचित हो गए हैं;पास २ रहते हुए भी सब अनजान बन गए हैं।
अब घरों में न वे रौनकें न ही है चहल-पहल,संबंध तो वही हैं,माप दंड गए हैं बदल;इसीलिए तो घर अब मकान बन गए हैं।
बाहर से दिखते सब अमीर हैं, पर अंदर से ग़रीब हैं,धन तो बहुत है पास पर रिश्ते नहीं क़रीब हैं;सब,जानते हैं सब,फिर भी नादान बन गए हैं ।
आओ,मिल कर इन मकानों को घर बनाएँ,आपस में प्यार करें,सुख दु:ख में एक हो जाएँ;फिर देखना आप को लगेगा कि आप कितने धनवान बन गए हैं।
December 8
यह कविता अपनी कर्मठ व त्यागमय जीवंन जीने वाली बेटी ‘राका’ के नाम, जिसका जीवन स्त्री सशक्तिकरण का जीवंत उदाहरण है।
“ऐ दिल निराश क्यों “
हमेशा ख़ुशियाँ ही ढूँढने वाले ,ऐ दिल,किसी के ग़म को गले लगा के देख ।
हर व्यक्ति जीता है अपने लिए,दूसरों के दु:ख में दो आँसू बहा के देख।
चारों ओर ग़म के घने बादल हैं छा रहे,दु:खों के सघन अंधकार में कई रास्ता खोज नहीं पा रहे;चाँद की चाँदनी न बन सके ,तो दीपक का उजियारा ही बन के देख ।
कष्टों के अथाह सागर में अनगिनत किश्तियाँ डगमगा रहीं,तूफ़ानों में घिरी तट तक पहुँचने को हिचकोले हैं खा रहीं;किसी एक डूबती किश्ती का,किनारा ही बन के देख।
बड़ा दिखने के लिए कभी किसी को नीचे मत गिरा,बड़ा बनना है तो ज़रा स्वयं को ऊपर उठा ;जुगनू की चमक न बन,चमकता इक सितारा बन के देख ।
यथा संभव सब को सहारा देने वाले,दिलअपने को बेसहारा समझता है क्यों,दूसरों के दु:ख में धैर्य बँधाने वालेअपने को बेचारा समझता है क्यों;अपनी शक्ति को पहचानस्वयं अपना सहारा बन के देख ।
हमेशा दूसरों पर प्यार लुटाने वालेआज प्यार की भीख माँगता है क्यों,गर्व से सिर उठा के जीने वालेअपने को दीन ,हीन मानता है क्यों;हर दिल में प्यार की ज्योंति जलाऔर सब का प्यारा बन के देख।
तन निर्बल हो भी जाए तो,मन को दु्र्बल कभी होने मत देना,‘मन हारा तो सब हारा’ मन का बल कभी खोने मत देना;आकर्षित हों ,जिस ओर सब,ऐसा अद्भुत इक नजा़रा बन के देख।
निराशा को छोड़ ,आशा का दामन थाम ले,परिस्थिति कैसी भी हो ज़रा साहस से काम ले ;कठिनाइयों की परवाह न कर ,हो सके तो सब से न्यारा बन के देख।
November 18
तियों से:-आदर्श पति बनना है तो नित्य पत्नी की आरती उतारिए,जो दिन को कहे रात और रात को कहे दिन तो मान लीजिए;
अपने बूढे़ बाप को वृद्ध-आश्रम भेजिए,फिर चाहे उम्र भर उसकी सुध न लीजिए;पत्नी के पिता को डैडी जी२ कह कर पुकारिए।
पति की जवान माँ भी हमेशा बुढ़िया कहलाए,कितने ही घूँट अपमान के वह रोज़ पी जाए;पत्नी की माता जी की जय २ कार कर पलकों पर बिठाइए।
मायके बेटी आए तो घर में कोहराम मच जाए,रोज़ आ जाती है ‘दीदी’न जाने अब यह कब जाए;साली जाने लगे तो रुकिए दीदी, कुछ दिन हमारे साथ और गुजा़रिए।
पति के सर्व संपन्न भाइयों से बुरे और कोई भाई नहीं,क्योंकि ,पत्नियों को दिखती उनमें कोई अच्छाई नहीं ;साले साहिब जैसे भी हों ,उन्हें ज़रा प्यार से निहारिए ।
पति माँ को प्यार करे तो पत्नी सोचने लग जाती है,कैसे निकालूँ इसे ,यह तो मेरे एकाधिकार में सेंध लगाती है;माँ तो चली ही जाएगी ,पत्नी को प्रसन्न कर जीवन सुख से गुज़ारिए।
तुम्हारे माँ-बाप,भाई-बहिन अच्छे हो नहीं सकते ;वे तुम्हारे हैं,पत्नी के बुरे हो नहीं सकते,वे उसके हैं व उसे अति प्यारे हैं;इस सत्य को हमेशा गाँठ बाँध लीजिए।
पत्नी के किसी काम में हस्तक्षेप न कीजिए,कुछ अनुचित भी करे तो अनदेखा कर आँख मूँद लीजिए;;जीवन सफ़ल हो जाए उसकी हाँ में हाँ मिलाइए ।
पति किसी कार्यवश भी लड़की से बोले तो शक के घेरे में आ जाए,पत्नी पुरुष सहकर्मियों से दिन भर चाहे बतियाए;चैन चाहिए तो इन तुच्छ बातों को नकारिए।
पत्नी के कहीं आने जाने पर प्रतिबन्ध न लगाइए,स्वयं शाम समय पर घर पहुँच जाइए;फिर पत्नी की आज्ञा बिना पैर बाहर न निकालिएहो सके तो रात का खाना भी बनाइए।
सुखमय जीवन जीना है तो पत्नी की हर बात माना कीजिए,स्वयं प्रसन्न रहिए और पत्नी को भी प्रसन्न कीजिए;आदर्श पति बन ‘गिनीज़ बुक में अपना नाम भी लिखवाइए।
सुझाव मानने के लिए हार्दिक धन्यवाद।
September 27
भगवान ने है कितना सुन्दर संसार बनाया,
भाँति भाँति के रंगों से है इसे सजाया
कहीं हिम की श्वेत चादर ओढे़ गगन चुम्बी पहाड़ों की चोटियाँ,
कहीं मख़मल सा फ़र्श लिए मनमोहक हरी हरी घाटियाँ;
झर झर बहते झरनों ने है इसे शोभायमान बनाया।
विशाल ,घने,हरे हरे पेड़ों के हैं जंगल कहीं,
शेर ,चीते,हाथी भालू आदि मना रहे मंगल वहीं;
कहीं वृक्षों पर पक्षियों ने है कलरव मचाया।
पर्वतों की गोद से निकल उछलती,कूदती नदियाँ बह रहीं,
मार्ग में कई रूप बदल पिया सागर से मिलने जा रही,
सागर ने भी उन्हें प्रेम से है गले। लगाया।
सागर का जल दिखता कहीं काला, नीला व कहीं हरा,
जहाँ तक दृष्टि जाए जल ही जल, नज़र नहीं आती धरा;
कहीं शांत उर्मियाँ कर रहीं अठखेलियाँ,
कहीं उन्मत्त लहरों ने है तांडव मचाया।
बाग़ों में विभिन्न फलों से लदी पेड़ों की डालियाँ,
क्यारियों में रंग-बिरंगी फूलों पर मंडराती सुन्दर तितलियाँ;
कहीं कोयल की कूक तो कहीं मोरों के नृत्य ने है साज सजाया।
रवि है जीवन,तो चाँद की चाँदनी अति प्यारी है,
तारकगण आकाश में नित्य मना रहे दीवाली हैं;
कहीं विद्युत रेखा ,तो कहीं इन्द्रधनुष ने है रंग जमाया।
चहुँओर प्रकृति की छटा अत्यन्त निराली है,
इसकी सुषमा से न कोई भी कोना ख़ाली है,
सृष्टि रचना में भगवान ने सब से सुन्दर इन्सान बनाया।
“इन्सान”
भगवान ने दी स्वर्ग सी धरती ,इन्सान उसे नर्क बना रहा,
नित्य रक्त की नदियाँ बहा,उनमें डुबकियाँ भी लगा रहा;
ईश्वर ने उसे इन्सान बनाया,उसने स्वयं को है शैतान बनाया।
ईश्वर कहो या अल्लाह कहो या गॉड,भगवान तो एक है,
मार्ग पृथक-पृथक हैं ,किन्तु मंज़िल तो एक है;
फिर क्यों सब धर्मों ने उस पर अपना अपना ठप्पा है लगाया।
प्रतिदिन जघन्य अपराध करना छोड़। दो,
हो सके तो रुख़ मानवता की ओर मोड़ लो;
गीता,क़ुरान,बाइबल,सब ने है यही पाठ पढ़ाया।
जीवन दे नहीं सकते तो जीवन छीनते हो क्यों,
प्यार का पौधा लगा नहीं सकते,घृणा की बेल सींचते हो क्यों;
प्रेम स्वर्ग है तो घृणा ने है संसार को नर्क बनाया।
स्त्री को माता (देवी)कह कर पूजने वालो,
नित्य प्रात:(जय माता दी) के जयकारे लगाने वालो;
दुष्कर्म के समय क्या माँ -बहिन का स्वरूप नज़र नहीं आया?
आधुनिकता की दौड़ में नैतिकता पीछे छूट गई,
भौतिकता मित्र बन गई,मानवता तो मानो रूठ गई;
देवता चैन से सो रहे ,दानवों ने है नंगा नाच दिखाया।
कुछ अपराधियों को दंड देने से कुछ नहीं होगा मान लीजिए,
दंड देना है तो उन माता-पिता व अध्यापकों को दीजिए;
जिन्होंने बचपन में बच्चों को नैतिकता नहीं पाठ पढ़ाया।
इन अनाचारों को देख भगवान भी हैरान हो रहा होगा,
क्या ऐसा ही बनाया था मैंने इन्सान ,सोचता होगा;
इसने अपने कुकर्मों से मेरे सिर को भी झुका दिया।
इससे अच्छा होता,यदि मैंने इन्सान। न बनाया होता,
तो किसी ने मानवता पर इतना बड़ा कलंक न लगाया होता।
वि शेष:-
कुछ महान व्यक्ति मानवता की भलाई के लिए
नए-नए अविष्कार हैं कर रहे,
डॉ०देवदूत बन कर मृतप्राय लोगों को जीवन दे रहे;
धरती स्वर्ग ही रहती, यदि सब ने सही मार्ग अपनाया होता।
September 4
ज़िंदगी तू हमेशा कहती रही,तुम्हें कुछ नहीं दिया मैंने,
जो मिला,सब बाँटा,तुम्हें कभी धोखा नहीं दिया मैंने।
बचपन में इकट्ठे मस्ती करते थे ,क्या याद नहीं?
शरारतें कर पिटने से न डरते थे,क्या याद नहीं?
कितना भोला व मासूम बचपन तुम्हें दिया मैंने।
तुमने मुझे सिखाया माता-पिता का सम्मान करो,
दिल न दु:खाओ,गर्व से सिर उनका ऊँचा करो;
जो जो कहा तुमने वैसा ही किया मैंने।
बचपन छोड़ साथ ही आगे बढ़ते गए,
सुख और दु:ख मिलकर ही सहते रहे;
जो भी हो तुम्हें पलकों पर बिठाया मैंने।
पाया भी बहुत कुछ और कुछ खोया भी मैंने,
जहाँ तक हो सका अपना कर्तव्य निभाया मैंने;
सब सहा पर तुम्हारा सिर कभी झुकने न दिया मैने
न जाने एक तूफ़ान कहाँ से आ गया,
चारों ओर अँधेरा ही अँधेरा छा गया;
तुमने आशा का दीप जलाया तो रास्ता ढूँढ लिया मैंने।
तुमने कहा। अपने सपनों को पीछे छोड़ दो ,
बच्चों के भविष्य की ख़ुशियों की ओर रुख़ अपना मोड़ लो;
बच्चे शान से सिर उठा के जी सकें,इसलिए अपना सिर झुका दिया मैंने।
जिनके लिए जो भी किया,सब मेरे अपने थे,
तुम्हारे और मेरे यही तो सुनहरे सपने थे;
और कुछ नहीं हमेशा कर्तव्य ही निभाया मैंने।
।
हमने आँगन की बगिया में कुछ पौधे थे लगाए,
अब वहाँ सुन्दर व रंग-बिरंगे फूल हैं मुस्कुराए;
इन फूलों की सुगन्ध से घर आँगन महका लिया हमने।
समय ने फिर लाकर ऐसे दोराहे पर खड़ा कर दिया,
कौन सा मार्ग चुनें,सोचना कठिन हो गया;
तुम्हारे मार्गदर्शन से सही रास्ता चुन लिया मैंने।
बच्चों की प्रसन्नता और उन्नति ही है अब मेरा सपना,
इसके आगे अब कोई स्वार्थ नहीं है अपना;
उनकी खु़शियों के लिए अपना सर्वस्व त्याग दिया मैंने।
।
ज़िन्दगी तू हमेशा मेरी परीक्षा ही लेती रही,
मैं भी सदा उसे चुनौती ही समझती रही;
तुम्हारी हर परीक्षा को उत्तीर्ण कर दिखाया मैंने।
तू बड़ी चतुर व कुशल है तो मैं भी कम नहीं,
मुझे पराजित कर सके ,तुम में इतना दम नहीं;
क्योंकि हर परिस्थिति को जीत का लक्ष्य बना लिया मैंने।
बंगला ,गाड़ी,धन-दौलत सब कुछ नहीं होता,
जो हम्हें मिला है ,जीवन में सब को नहीं मिलता;
जहाँ भी जाए सम्मान मिले ,तुम्हें ऐसा बना दिया मैंने।
आजा,अब तो प्यार से मिलें गले,
भूल कर सब पुराने शिकवे व गिले;
जो भी पाया सब तुम्हारे ही सहारे पाया मैंने।
अब न कहना ,तुम्हें कुछ नहीं दिया मैंने,
तुम पर अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया मैंने।
August 11
रोने से यदि भाग्य बदलता,
तो हर कोई बदल लेता।
जीवन यदि फ़्रेम में मढ़ा चित्र होता,
तो व्यक्ति रोज़ बदल देता।
जीवन की राहें ऊबड़-खाबड़ व काँटों भरी हैं,
रास्ता सीधा व समतल होता तो,
हर कोई चल लेता।
जीवन में कुछ भी पाने के लिए परिश्रम ज़रूरी है,
इच्छाओं से सब मिलता तो,
दिल रोज़ मचल लेता।
नवजात बच्चा भी जीने के लिए परिश्रम करता है,
बिना रोए उसे भी,
माँ का दूध नहीं मिल पाता।
आलसी जब तक भाग्य की रेखाएँ गिनता है,
परिश्रमी उतनी देर में,
चाँद को छू के है आ जाता।
नदी के उस पार जाना है,कुछ तो प्रयास करोगे,
वरना दूसरा किनारा
स्वयं पास नहीं आता।
माना कि भाग्य से ही सब मिलता है,
परिश्रमी अपनी लगन से,
कुछ का कुछ है कर जाता।
भाग्य से धनवान के घर जन्मे, तो कुछ भी बन गए,
मेहनत से एक मछुआरे का बेटा,
मिसाइल-मैन व राष्ट्रपति है बन जाता।
भाग्य का लिखा भी परिश्रम से मिलता है,
सामने परोसा भोजन,
मुँह में स्वयं नहीं जाता ।
परिश्रम करके सब कुछ पा लोगे जीवन में,
वरना,निकम्मों की तो,
भाग्य भी है हँसी उड़ाता।
एक श्लोक: -
उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न तु मनोरथै: ।
सुप्तस्य सिंहस्य मुखे मृगा: न प्रविशन्ति।।
Written on Mothers’ day
माँ,आज तुम्हारी बहुत याद आ रही है,
तुम्हारी प्यारी सूरत दृष्टि से न परे जा रही है ।
तुम्हारे कई रूप देखे जीवन में हमने,
कभी बर्तन धोती कभी रोटी बनाती,
कभी चावल बीनती नज़र आ रही है।
कभी देखा रस्सी पे कपड़े सुखाते तुमको,
कभी गीली लकड़ियों के धुएँ से आँखों में पानी भर,
फूँक से उनको जलाती नज़र आ रही है।
तुम्हें जब भी देखा काम में लगे देखा,
यदि कभी ख़ाली हो भी जाओ तो,
मेरे बालों में तेल लगाती नज़र आ रही है।
अपने पति को भगवान मान लिया तुमने,
उनको आवश्यकता से अधिक सम्मान दिया तुमने,
भोजन करने बैठते तो,तू पंखा करती नज़र आ रही है।
हमेशा दिया ही दिया ,कभी कुछ न लिया तूने,
सब कुछ न्योछावर करना ,अपना कर्तव्य मान लिया तूने,
तू ममता व त्याग की मूरत नज़र आ रही है।
बच्चों को प्रसन्न देख प्रसन्न हो जाती थी,
हमारे रोने से पहले तेरी आँख भर आती थी,
न जाने कौन कौन सी छवि तुम्हारी,मेरी आँखों में समा रही है ।
सब कुछ लुटाने को तत्पर रहती थी तुम,
जो मिल गया उसी में सन्तुष्ट रहती थी तुम,
आँख बन्द करके देखूँ तो,साक्षात देवी नज़र आ रही है।
बड़ी मासूम ,भोली व बडी़ प्यारी थी माँ,
अपनों के लिए तू सब कुछ हारी थी माँ,
विपत्ति में रक्षा हेतु , शेर की सवारी नज़र आ रही है।
मेरा शत शत नमन है माँ तुमको,
तुम ही मेरी माँ बनो ,यदि फिर मिले जन्म मुझको,
क्योंकि तुम्हारे जैसी न और कोई माँ नज़र आ रही है।
July 20
आधुनिक समाज में माता-पिता की स्थिति देख कर,व आज वृद्ध आश्रम मे कुछ बूढ़ों को देख कर कुछ पंक्तियाँ व युवा पीढ़ी को चेतावनी।
आज पति-पत्नी व बच्चे सुखी परिवार कहलाता है,
माता-पिता के लिए उनके जीवन में न कोई स्थान रहता है।
उम्र भर तन ,मन ,धन अर्पण करने वाले माँ-बाप,
अंत में बन जातेहैं यादें।
दूर से बच्चों को ख़ुश देख ,प्रसन्न होते हैं,
कभी कभी अश्रुओं की माला भी पिरोते हैं;
ईश्वर से प्रार्थना करते हैं,हमारे बच्चे न बने
कभी यादें।
नई पीढ़ी से…………..
कल तुम्हारे बच्चे युवा हो कर अपना घर बसाएँगे,
तथाकथित परिवार में मस्त हो जाएँगे;
जिन पर गर्व से इतरा रहे हो आज,वही कल आप को
बना देंगे यादें।
जन्म से बच्चा तो भोला व मासूम होता है,
अपने बड़ों से जो सीखता है वही करता है;
उनके सामने माँ-बाप का अपमान करोगे तो,
आज आप के सहारे जीने वाले ,कल आप को
बना देंगे यादें।
यादें नहीं बनना है तो ऐसा कीजिए,
माता-पिताको अपने दिल में थोड़ा सा स्थान दीजिए;
फिर देखिए,कैसे “उदाहरण” बन जाती हैं यादें।
July 20
न जाने आज क्यों सता रही हैं पुरानी यादें,
वर्षों से बिछुड़ों को मिला रही हैं ये यादें।
यादों को भुला ,नए मार्ग पर चल पडे़ हैं,
इन रास्तों पर आगे बढ़ भी गए हैं;
फिर क्यों रास्ता रोकने आ रही हैं यादें।
कुछ मीठी ,कुछ खट्टी,कुछ हैं कड़वी भी,
कुछ हँसाती, कुछ रुलाती,कुछ करती उदास भी;
जैसी भी हैं ,हर किसी के लिए ख़ास हैं यादें।
यादों को बन्द कर लाख ताले लगाइए,
बाहर न आ सकें , उन पर पहरे भी बिठाइए;
खिड़की के शीशे तोड़ बाहर आ जाती हैं यादें।
बुद्धि कहती है ,यादों को पीछे छोड़ दो,
नए सपनों से अपना नाता जोड़ लो;
दिल कहता है साथ ही चलने दो ,बडी़ प्यारी हैं यादें।
माना,यादों के सहारे जिया नहीं जाता,
पर उनको अपने से अलग किया भी नहीं जाता;
भविष्य में विघ्न न बनें, तो बहार हैं यादें।
एकाकी व्यक्ति का मन बहलाती हैं ,
कुछ उसकी सुनती हैं,कुछ अपनी सुनाती हैं;
व्यर्थ ही सही , उसके जीने का आधार हैं यादें।
यादों के दर्पण में दिखे कई चेहरे,
आज न सही ,कभी तो थे वे मेरे;
बहुत ही मधुर हैं उन चेहरों की यादें।
कल की यादों से शिक्षा ले वर्तमान सँवारिए,
विघ्न,बाधाएँ आएँ,हिम्मत न हारिए;
क्योंकि जो आज है,आने वाले कल में वह बन जाएगा यादें।
July 14
बैसाखियाँ छोड़, अपने पैरों पर खडे़ हो जाइए,
अपने दम पर दुनिया में कुछ कर के दिखाइए।
हाथ पकड़ रेंगते हुए मंजिल तक पहुँचे तो क्या किया,
साहस है तो मंज़िल को अपने समीप लाइए।
दूसरों पर बोझ बन कर जीना भी कोई जीना है,
हो सके तो अपना बोझ स्वयँ ही उठाइए।।
बच्चा भीं चल के गिरता है, फिर उठ के चलता है,
अपने आप को यूँही न पंगु बनाइए।
हाथ पकड़ कर तैरना सीखा नहीं जाता,
तैरना है तो गहरे पानी में कूद जाइए।
कब तक बच्चे की भाँति अंगुली पकड़ कर चलोगे,
साहस व विश्वास को अपना संबल बनाइए।
सहारा ही लेना है ,ईश्वर का लीजिए,
अपने भरोसे जो चाहते हैं ,वह पाइए ।
अपने परिश्रम से किए काम की ,प्रसन्नता ही और है,
विश्वास नहीं है तो,कभी इसे भी आज़माइए।
July 6
हँसतों को रुलाना बहुत आसान है,
किसी रोते को भी हँसाया है कभी?
अपने मित्रों से रोज़ दावतें करते हो,
किसी भूखे को भर पेट खिलाया है कभी?
उम्र बिता दी दूसरों के दोष ढूँढने में,
अपनी ग़लतियों का हिसाब लगाया है कभी?
ज़रा सी चोट लगी तो हाय हाय करने लगे,
दूसरों को दी चोटों को गिनाया है कभी?
किसी के दामन पे लगा दाग देख मुस्काने लगे,
अपना कीचड़ से भरा आँचल नज़र आया है कभी?
धनी लोगों से मिलना अपनी शान समझते हो,
किसी ग़रीब दु:खिया को पास बिठाया है कभी?
ईश्वर ने सब दिया,अब और क्या माँगते हो,
जो दिया,उसके लिए शीश झुकायाहै कभी?
काले धन से भर ली तिजोरियाँ अपनी,
सोचो,मरने से पहले किसी ने सब खाया है कभी?
पैसे की चमक दिखा कर ,बच्चों को निकम्मा कर दिया,
उनका भविष्य क्या होगा,नज़र आया है कभी?
अपने अंदर झाँक कर इन प्रश्नों के उत्तर ढूँढिए,
वह सत्य मिलेगा,जो आज तक नज़र न आया है कभी.
June 30
देखिए, क्या क्या रंग दिखाती है ज़िंदगी
रोज़ नई सौग़ातें ले कर आती है ज़िंदगी।
कही फूलों कीसेज तो कहीं काँटों की शैय्या है,
कहीं स्वयं ही पलकें बिछाती है ज़िंदगी।
नित्य किसी को सुख और किसी को दु:ख दे कर,
हर हाल में जीने का ढंग सिखाती है ज़िंदगी।
निर्बल तो हमेशा डर के रहता है,
बलवानों के आगे सिर झुकाती है ज़िंदगी।
मैदान में पीठ दिखाई तो कायर बन गए,
सीने पर गोली खाने वालों को शहीद बनाती है ज़िंदगी।
उज्ज्वल भविष्य की जो करते हैं कामना,
उनके लिए जीने की उमंग बन जाती है ज़िंदगी।
ं हमेशा एक ही रंग रहे तो जीवन नीरस हो जाए,
इसलिए रोज़ नए नए रंग दिखाती है ज़िंदगी।
जो बोया है वही तो काटोगे तुम,
हमेशा यही सीख हम्हें सिखाती है ज़िंदगी।
अधिक मीठा स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं,
तभी तो कभी २ कड़वे घूँट पिलाती है ज़िंदगी।
वैसे तो संसार में किसी वस्तु की कमी नहीं,
हम्हें हमारे हिस्से का दे जाती है ज़िंदगी।
ज़िंदगी जो भी देती है ख़ुशी से झोलियाँभर लो,
लेती कुछ नहीं , कुछ न कुछ दे जाती है ज़िंदगी।
ज़रा देखने का अपना दृष्टिकोण बदलिए,
देखिए,फिर कितनी सुंदर नज़र आती है ज़िंदगी।
June 19
हाथ पकड़ कर साथ चलने का वादा किया था,निभाया तो होता,
बीच राह में साथ छोड़ दिया,मंज़िल तक पहुँचाया तो होता।
अब तो रात लंबी है ,घुप अंधेरा है,
राह सूझती नहीं,दूर सवेरा है।
बीच भंवर में नाव है, किनारा नज़र आता नहीं,
किस से फ़रियाद करें,कोई सहारा नज़र आता नहीं।
तैरना आता नहीं कश्ती को पार लगाना है,
अपनी चिंता नहीं,नाव में सवार औरों को बचाना है ।
कोई मजबूरी न होती ,तो तुम साथ नही छोड़ते,
कितनी भी कठिनाइयो़ में ,कभी हाथ नहीं छोड़ते।
इसलिए अब हार नहीं माननी संघर्ष करनाहै,
तुम्हारे अधूरे सपनों को पूरा करना है।
यह सोच,तुम्हारी यादों से।सूने घर को सजाया हमने।
आशाओं के दीप जला कर , घर के आँगन को जगमगाया हमने।
अब तो चारों ओर प्रकाश व ख़ुशियाँ हैं,पर तुम्हारी कमी तो है ,
कोई दिखाता नहीं ,सब की आँखों में नमी तो है ।
अब सब काम पूरे हुए,कोई इच्छा नहीं बाक़ी,
किन्तु तुम से एक शिकायत अब भी है बाक़ी,
हाथ पकड़ कर साथ चलने का वादा किया था,निभाया तो होता,
बीच राह में साथ छोड़ दिया,मंज़िल तक पहुँचाया तो होता।
June 5
जीवन में दु:ख तो बहुत हैं लेकिन,
हर समय रोना अच्छ नहीं लगता।
हमेशा अपने दुखड़े सुना कर ,
दूसरों का चैन खोनाअच्छा नहीं लगता।
ख़ुशियाँ भी मेरी हैं,ग़म भी मेरे हैं,
मुझे दोनों से अलग होना अच्छा नहीं लगता।
आँसू बहें तो रुकने का नाम न लें,
पर मुझे पलकें भिगोना अच्छा नहीं लगता।
चमन के फूल मुझे आवाज़ देते हैं,मगर
मुझे फूलों का बिछोना अच्छा नहीं लगता।।
प्यार के फूलों की ख़ुशबू से महका दें दुनिया को,
हमेशा नफ़रतों के बीज बोना अच्छा नहीं लगता।
प्यार व सम्मान से दे कोई ,तो विष भी पी लूँ,
क्योंकि मुझे स्वाभिमान खोना अच्छा नहीं लगता।
हे प्रभु,शक्ति व साहस देना मुझे,
किसी पर निर्भर हो कर जीना अच्छानहीं लगता ।
June 1
कुछ बातें दिल से...
आ,दिल बैठ ज़रा,आज कुछ बातें करें,
ग़मों को भूल ,खु़शियों से मुलाक़ातें करें।
सुख और दुख ज़िंदगी के दो रूप हैं,
कहीं शीतल छाया कहीं कड़कती धूप है;
ख़ुशियों मे मस्ती से झूमने वाले,
आ,ज़रा ग़मों को भी सहलाते चलें।
तेरा मेरा अटूट बंधन है,
तेरे धड़कने से जीवन में स्पंदन है;
तू नहीं तो मेरी भी हस्ती नहीं,
चल हँसे , औरतें के भी हँसाते चलें।
आ दिल...
कुछ छूटे,कइयों ने छोड़ा,तूने साथ नहीं छोडां,
कितने तूफा़नों में तुम ने मुख नहीं मोडा़;
हर हाल में साथ निभाया तूने,
आगे भी इस रिश्ते को निभाते चलें
आ दिल...
मेरी हार को भी जीत में बदल दिया तूने,
कमजो़र होने पर मुझ को सबल किया तूने;
तेरे साथ से वीराना भी उपवन हुआ,
वहॉ खिले फूलों से जग को महकाते चलें।
आ,दिल बैठ ज़रा,आज कुछ बातें करें,
ग़मों को भूल कर खु़शियों से मुलाक़ातें करें।
May 31st
मॉ ऐसा क्यों किया तूने,जन्म लेते ही कचरे में फैंक दिया तूने।
न प्यार किया न गले से लगाया,मुझे नंगे बदन काँटों पर लिटाया।
मुझ पर क्यों इतना अत्याचार किया,जग की सभी मॉओं को शर्मसार किया।
कहते हैं कि मॉ ममता की मूर्त होती है,क्या यही ममतामयी माँ की सूरत होती है?
मॉ,मैं स्वयं तो दुनिया मे् थी नहीं आई,तू ही मुझे इस संसार में थी लाई।
मेरा क़सूर यह था कि मैं एक लड़की थी,जब तुम पैदा हुई तुम भी तो लड़की थी।
तुम से तुम्हारी मॉ ही अच्छी,जिसने तुम्हें प्यार किया,पाला पोसा और जीने का अधिकार दिया।
काश तुम नहीं ,मेरी मॉ नानी हेती,मेरे जीवन की न इ तनी करुण कहानी होती।
फैंका था मॉ ,इतना तो कर देती,मेरे ःबदन को एक कपडे़ से ही ढक देती।
तुमने मुझ को ही नहीं , खु़द को भी शर्मसार किया,दुनिया की हर औरत की लाज को तार तार किया।
मॉ,मैं मरी नहीं ,अभी सॉंस बाक़ी है,जीने की चाह और ईश्वर विश्वास बाक़ी है।
मैं न रोऊँगी , न चीत्कार करूँगी, किसी चमत्कार के होने का इंतजा़र करूँगी ।
अरे,मुझे दो प्यारे हाथों ने उठा लिया,आँचल में लपेटा और सीने से लगा लिया।
शायद मुझे नए मॉ बाप मिल जाएँ,पालें पोसें अपने घर की शोभा बनाएँ।
पढ़ालिखाकर मुझे उन ऊँचाइयों तक ले जाएँ,जहाँ देखने वाले भी दंग रह जांएँ।
ऐसा हुआ तो मॉ, तेरा पाप कुछ कम हो जाएगा ,मॉओं को खोया सम्मान मिल जाएगा
ईश्वर कर नई माँ जैसी हर मॉ हो ,पर तुम्हारे जैसी कोई निर्दयी माँ न हो।अल विदा.जा रही हूँ नए जीवन की आशा लिए।